दिल्ली के कालकाजी भूमि‍हीन कैंप में डीडीए की बड़ी कार्रवाई: 350 झुग्गियों पर चला बुलडोजर, हजारों लोग बेघर

कालकाजी भूमि‍हीन कैंप में तड़के से शुरू हुआ बुलडोजर एक्शन

सुबह पौने छह बजे से दिल्ली के कालकाजी इलाके का भूमि‍हीन कैंप अचानक पुलिस और डीडीए के भारी अमले से घिर गया। बिना किसी हंगामे के, डीडीए की टीम ने 350 से अधिक झुग्गियां बुलडोजर से ढहा दीं। पांच एकड़ में फैले इस पूरे कैंप को कब्जा रहित करने के लिए पहले ही नोटिस दे दिया गया था, लेकिन वहां के निवासियों के लिए यह चेतावनी खोखली साबित हुई क्योंकि हटाए जाने वाले परिवारों को रहने का कोई वैकल्पिक इंतजाम हाथ में नहीं मिला।

अधिकांश परिवारों में छोटे बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं थीं—ये वही लोग हैं, जो हर दिन शहर के अलग-अलग हिस्सों में मज़दूरी, रिक्शा चलाने, घरेलू काम या निर्माण स्थलों पर काम करते हैं। उनके लिए अपनी मेहनत की कमाई से झुग्गी बनाना ही सपना था, अब उनका सब कुछ पल भर में राख हो गया।

राजनीति उबाल पर, नेताओं का आमने-सामने

डीडीए की इस कार्रवाई के कुछ ही घंटों बाद इलाके में राजनीतिक माहौल गरमा गया। आप विधायक अतिशी मौके पर प्रदर्शन कर रहीं थीं—उनको पुलिस ने हिरासत में ले लिया। अतिशी ने गुस्से में बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर जमकर आरोप लगाए, कहा—“बीजेपी और रेखा गुप्ता पर झुग्गीवासियों की बद्दुआ लगेगी, वे कभी वापस नहीं आएंगे।” यह बयान सुनकर वहां मौजूद लोगों में भी जबरदस्त आक्रोश दिखा। अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर सीधे बीजेपी सरकार को कठघरे में खड़ा किया, कहा कि शहर की हालत बदतर बनाने के लिए बीजेपी जिम्मेदार है। किसी ने सरकार पर गरीबों के साथ विश्वासघात का आरोप लगाया, किसी ने इसे क्रूर कार्यवाही करार दिया।

हैरानी इस बात की रही कि जैसे ही बुलडोजर चला, अदालत में सुनवाई भी उसी दिन कुछ घंटों बाद होनी थी। यानी सैंकड़ों परिवारों की छत छिन गई, जबकि मामले पर सुनवाई अभी पेंडिंग थी।

डीडीए ने कहा कि ये कार्रवाई दिल्ली हाईकोर्ट के साफ निर्देश के तहत हुई है—यह इलाका 1 जनवरी 2006 से पहले ही बसा हुआ था, इसलिए ड्यूसिब (DUSIB) की पुनर्वास योजना के तहत इन लोगों को दोबारा बसाना तय है। फिलहाल खाली कराई गई ज़मीन के चारों तरफ दीवार बनाने का प्लान है ताकि दोबारा कब्जा न हो सके।

दिल्ली में इस तरह की बड़ी कार्रवाई नई नहीं है। बीते कुछ सालों में डीडीए ने शहर के कई इलाकों में झुग्गियां गिराने का अभियान छेड़ा है। हर बार सैकड़ों परिवार तात्कालिक बेसहारा हो जाते हैं, सरकारी फाइलों में उनके पुनर्वास की योजनाएं तो बनती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत बेहद अलग है। कालकाजी कैंप की ताजा तस्वीर फिर यही सवाल खड़े कर गई कि झुग्गीवालों की जिंदगी अगले मोड़ पर कौन से नए संघर्ष के साथ आगे बढ़ेगी?

akhila jogineedi

akhila jogineedi

मैं एक पत्रकार हूँ और मेरे लेख विभिन्न प्रकार के राष्ट्रीय समाचारों पर केंद्रित होते हैं। मैं राजनीति, सामाजिक मुद्दे, और आर्थिक घटनाओं पर विशेषज्ञता रखती हूँ। मेरा मुख्य उद्देश्य जानकारीपूर्ण और सटीक समाचार प्रदान करना है। मैं जयपुर में रहती हूँ और यहाँ की घटनाओं पर भी निगाह रखती हूँ।

टिप्पणि (6)

wave
  • Arun 3D Creators

    Arun 3D Creators

    अग॰ 15, 2025 AT 18:41 अपराह्न

    सरकार की इस कार्रवाई हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि अधिकार और ज़िम्मेदारी के बीच की रेखा कहाँ खिंची जानी चाहिए

  • RAVINDRA HARBALA

    RAVINDRA HARBALA

    अग॰ 22, 2025 AT 13:53 अपराह्न

    डीडीए के आधिकारिक बयान को पढ़ कर स्पष्ट है कि यह कदम केवल कागज़ी दस्तावेज़ों पर आधारित है, जमीन पर रहने वाले लोगों को कोई वास्तविक पुनर्वास नहीं मिला है। यह नीतियों का चयन मनगढ़ंत है और इससे निपटने के लिए हमें ठोस आँकड़े चाहिए।

  • Vipul Kumar

    Vipul Kumar

    अग॰ 29, 2025 AT 09:05 पूर्वाह्न

    यह घटना वास्तव में कई सामाजिक मुद्दों को उजागर करती है।
    पहले, भूमि‑हीन लोगों की स्थितियों को हमेशा अस्थायी समाधान के रूप में देखा जाता रहा है।
    दूसरा, जब सरकारी आदेश के बाद भी पुनर्वास योजनाएँ लागू नहीं होतीं तो यह मौन न्याय की विफलता कहलाती है।
    तीसरा, इस तरह के दुरुपयोग से न केवल आर्थिक अस्थिरता बढ़ती है, बल्कि मानसिक आघात भी होता है।
    चौथा, हम देखते हैं कि राजनीतिक दल अक्सर इस मुद्दे को अपनी मतदान रणनीति में उपयोग करते हैं, जबकि वास्तविक मदद जमीन पर नहीं पहुँचती।
    पाँचवाँ, प्रभावित परिवारों के बच्चों की पढ़ाई पर भी बड़ा असर पड़ता है क्योंकि उनका स्कूल जाना रुक जाता है।
    छठा, कई महिला प्रमुख गृहिणियों को घर की सुरक्षा नहीं मिल पाती, जिससे घरेलू हिंसा की संभावना बढ़ जाती है।
    सातवाँ, इस प्रक्रिया में पुलिस की भागीदारी अक्सर अनैतिक बन जाती है, जो लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
    आठवाँ, पुनर्वास के नाम पर दोबारा दीवारें बनाना केवल समस्या को फिर से सॉलिडिफ़ाई करने जैसा दिखता है, लेकिन वह समाधान नहीं बनता।
    नौवाँ, हमें एक समुचित पुनर्वास मॉडल चाहिए जिसमें आर्थिक सहायता, उचित घर, स्वास्थ्य सुविधाएँ और शिक्षा शामिल हो।
    दसवाँ, ऐसी पहल को स्थानीय NGOs और सामुदायिक समूहों के सहयोग से संचालित करना चाहिए, जिससे पारदर्शिता बनी रहे।
    ग्यारहवाँ, न्यायालय के आदेशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र निगरानी संस्था का गठन आवश्यक है।
    बारहवाँ, इस तरह की योजनाओं के लिए बजट आवंटन को भी सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।
    तेरहवाँ, मीडिया को इस मुद्दे पर निरंतर प्रकाश डालना चाहिए, ताकि जनता की आवाज़ सुनवाई जा सके।
    चौदहवाँ, अंत में हम सभी को मिलकर इस असमानता के विरुद्ध एकजुट होना होगा, क्योंकि सामाजिक न्याय तभी संभव है जब हर व्यक्ति को सम्मानित जीवन मिल सके।
    पंद्रहवाँ, इसलिए हम सभी को इस मुद्दे पर सक्रिय रहना चाहिए, सार्वजनिक प्रतिनिधियों से जवाबदेही की माँग करनी चाहिए, और प्रभावित परिवारों के लिए ठोस उपायों की वकालत करनी चाहिए।

  • Priyanka Ambardar

    Priyanka Ambardar

    सित॰ 5, 2025 AT 04:17 पूर्वाह्न

    देश की मर्यादा की बात है, ऐसी निराधार कार्रवाई को सहन नहीं किया जा सकता 😡🇮🇳

  • sujaya selalu jaya

    sujaya selalu jaya

    सित॰ 11, 2025 AT 23:29 अपराह्न

    समस्याओं को समझकर ही समाधान निकाला जा सकता है

  • Ranveer Tyagi

    Ranveer Tyagi

    सित॰ 18, 2025 AT 18:41 अपराह्न

    देखिए, यह मामला बहुत संवेदनशील है, हमें तुरंत एक समग्र योजना तैयार करनी चाहिए, जिसमें राहत सामग्री, पुनर्वास के ठिकाने, उद्योगों से सहयोग, कानूनी सहायता, और सामाजिक संगठनों की भूमिका शामिल हो, क्योंकि केवल शब्दों से कुछ नहीं बदलेगा, कार्रवाई ही एकमात्र उपाय है!!

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