गुड़गाँव के सेक्टर‑57 में 10 जुलाई 2025 को 25 वर्षीया टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की लाश उनके घर के रसोई में मिली। चार गोली मारके, तीन पीठ में और एक कंधे में, उसे बिंदु‑बिंदु दूरी से मार दिया गया था। इन घटनाओं की जाँच में पिता दीपक यादव ने ही हत्या का कबूलनाम लिखा, जिससे केस ने तेज़ी से आगे बढ़ते हुए ‘ओपन एंड शट’ बताया गया।
हत्या के पीछे का कारण
पुलिस के बयान के अनुसार, दीपक यादव (49) ने राधिका के टेनिस कोचिंग व्यवसाय से नाराजगी जताई थी। वह अपने घर के खर्चे के लिए बेटी की आय पर निर्भर था और उसने बेटियों की आर्थिक स्वतंत्रता को ‘जुश’ माना। पिछले दो हफ़्तों में वह लगातार उदास दिख रहा था और राधिका से कोचिंग बंद करने की बार‑बार माँग कर रहा था, पर वह अस्वीकार कर गई। इस टकराव को पुलिस ने ही हत्या का मूल मोटिव माना।
राधिका के चचेरे भाई कुलदीप ने ही FIR दर्ज करवाई थी। उन्होंने बताया कि वह रसोई में खून का तालाब देख कर घबरा गया था और रिवॉल्वर ड्राइंग रूम में मिला था। पुलिस ने घर में पाँच गोलियों और एक लाइव कार्ट्रिज भी बरामद किया।
- राधिका ने एआईटीए यू‑18 रैंकिंग में 75वें स्थान पर रहा।
- वर्ल्ड टेनिस में उसका रैंक 1999 था, सिंगल्स में सर्वश्रेष्ठ 35 तक पहुँचा।
- 2025 में इंदौर और कुआला लम्पूर में क्वालीफायर इवेंट्स में भाग लिया।
- 2023 में उसने एक रोमांटिक म्यूजिक वीडियो भी किया, जिससे घर में तनाव बढ़ा।
राधिका की सबसे करीबी मित्र हिमांशिका सिंह ने कहा कि उनके पिता अत्यधिक नियंत्रण वाले थे। वह अक्सर राधिका को उसकी पोशाक, विशेषकर टेनिस शॉर्ट्स पहनने के लिए शर्मिंदा करते थे, जबकि वह प्रोफेशनल टेनिस खिलाड़ी थी। इस प्रकार का सामाजिक दबाव राधिका को भावनात्मक रूप से बहुत तनावपूर्ण बना रहा।

कानूनी कार्रवाई और सामाजिक प्रतिक्रिया
गुड़गाँव की अदालत ने दीपक यादव को जड़े किनारे पर रख दिया। उन्हें ज्यूडिशियल कस्टडी में भेजा गया और आगे की जांच के लिए पटौदी के एक गाँव में ले जाया गया। पुलिस ने यह भी पता लगाया कि पिता के पास कई संपत्तियां थीं और उसकी आय स्थिर थी, इसलिए आर्थिक ‘तंगी’ के आरोप को खारिज कर दिया गया।
राधिका की माँ मन्त्रु यादव घटना के समय पहले मंज़िल पर थीं, पर उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। परिवार ने अगले दिन 11 जुलाई राधिका का अंत्येष्टि उसके род गांव वज़ीराबाद में कराई।
यह मामला भारत में ‘ऑनर किलिंग’ और लिंग‑आधारित हिंसा के मुद्दे को फिर से उजागर कर रहा है। कई सामाजिक समूहों ने कहा कि युवा महिला एथलीटों को पारिवारिक दबाव और हिंसा से बचाने के लिए कड़ाक़ा कानून चाहिए। साथ ही, खेल संगठनों को अपने खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिए थाल-बद्ध उपाय अपनाने की जरूरत पर बल दिया।
पुलिस ने कहा कि वे इस केस को पूरी तरह से सुलझा चुके हैं, लेकिन यह घटना जेंडर इक्वैलिटी और पारिवारिक अधिकारों के बीच के जटिल संबंधों को दर्शाती है। आगे भी न्यायिक प्रक्रिया जारी रहेगी और गवाहों की गवाही का इंतज़ार किया जा रहा है।
Govind Kumar
सित॰ 23, 2025 AT 07:50 पूर्वाह्नराधिका यादव की यह दुखद घटना हमारे समाज में जेंडर‑बेस्ड हिंसा के सन्दर्भ में गंभीर चेतावनी है।
परिवारिक दबाव और आर्थिक नियंत्रण के बहाने महिला एथलीटों को मारना एक अजीब लेकिन गहरा भ्रष्टाचार है।
कानून को सख्त बनाना चाहिए ताकि ऐसे मामलों में न्याय शीघ्र मिल सके।
खेल संघों को भी खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिए ठोस उपाय करने चाहिए।
हमें सामुदायिक स्तर पर जागरूकता बढ़ानी होगी, तभी भविष्य में ऐसे त्रासदियों को रोका जा सकेगा।
Shubham Abhang
सित॰ 23, 2025 AT 08:00 पूर्वाह्नबहुत‑बहुत…शोक! ... इस तरह की घटनाएँ समाज को हिला देती हैं!! पिता का ऐसा कदम…अविश्वसनीय!! हमें सख़्त दंड की माँग करनी चाहिए!!!
Trupti Jain
सित॰ 23, 2025 AT 09:46 पूर्वाह्नराधिका का करियर देखते ही बनता है-विश्व रैंक में प्रवेश कर रही थी, फिर भी घर में शरारती खतरनाक माहौल बना था।
उसके पिता का जलन और नियंत्रणीय स्वभाव अस्वीकृत करियर विकल्प पर घातक परिणाम लाया।
ऐसी पारिवारिक टकराव को सदैव गंभीरता से लेना चाहिए, विशेषकर जब महिला की पेशेवर आकांक्षा स्पष्ट हो।
समाज को इस तरह के ‘जुश’ के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी, नहीं तो और अधिक अनसुलझी मौतें होंगी।
deepika balodi
सित॰ 23, 2025 AT 09:56 पूर्वाह्नपिता‑बेटी के रिश्ते को समझदारी से संभालना चाहिए, नहीं तो हिंसा ही एकमात्र समाधान बन जाता है।
Priya Patil
सित॰ 23, 2025 AT 12:33 अपराह्नराधिका जैसी युवा एथलीटों को फैमिली सपोर्ट की जरूरत होती है, न कि नियंत्रण की।
उसके कोचिंग करियर में जो मेहनत और समर्पण था, वह एक उदाहरण होना चाहिए।
परिवारिक दवाब ने इस समर्पण को बर्बाद कर दिया।
हमें खेल संस्थानों को यह निर्देश देना चाहिए कि वे खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिए हेल्पलाइन और काउंसिलिंग व्यवस्था रखें।
इनसे भविष्य में इसी तरह की त्रासदियों को रोका जा सकता है।
Rashi Jaiswal
सित॰ 23, 2025 AT 12:41 अपराह्नराधिका की याद हमें हमेशा प्रेरित करेगी, क्योंकि उसने अपने छोटे उम्र में ही कड़ी मेहनत से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।
उसकी जिद और जूनून देखकर हर किसी को सीख मिलनी चाहिए कि कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।
भले ही उसके साथ दुष्ट पिता ने दुर्दशा घड़ी, लेकिन उसकी उपलब्धियों को कभी मिटाया नहीं जा सकता।
हमें उसकी कहानी को याद करके युवा लड़कियों को सशक्त बनाना चाहिए।
स्पोर्ट्स अकैडमीज़ को चाहिए कि वे अपने एथलीट्स को न सिर्फ तकनीकी ट्रेनिंग, बल्कि जीवन कौशल की भी शिक्षा दें।
परिवारिक समर्थन के बिना भी एक एथलीट आत्मनिर्भर बन सकता है, अगर समाज उसका सहयोग दे।
राधिका ने हमारे लिये दिखाया कि महिला एथलीट्स को समान अवसर मिलना चाहिए।
इसलिए हमें सरकार से मजबूत कानून की मांग करनी चाहिए, जो परिवारिक हिंसा को तुरंत रोक सके।
यदि न्याय जल्दी नहीं मिला तो सामाजिक आंदोलन भी काम कर सकता है।
हमें सड़कों पर, सोशल मीडिया पर, और स्कूलों में जेंडर इक्वालिटी का प्रचार करना चाहिए।
हर बच्चे को यह अधिकार होना चाहिए कि वह अपनी पसंद के खेल में भाग ले सके।
आज की पीढ़ी को यह समझाना जरूरी है कि किसी भी प्रकार का दबाव या हिंसा अस्वीकार्य है।
हम सब को मिलकर एक ऐसा माहौल बनाना है जहाँ राधिका जैसी प्रतिभा सुरक्षित रह सके।
चलो, हम सब मिलकर इस लक्ष्य को साकार करें और इस दर्दनाक घटना को एक नया सीख बनाएं।
राधिका की आत्मा हमेशा हमारे संग रहेगी, और उसका जुनून हमें आगे बढ़ाता रहेगा।
Maneesh Rajput Thakur
सित॰ 23, 2025 AT 15:20 अपराह्नकहते हैं कि पुलिस ने सब सुलझा लिया, लेकिन अक्सर ऊँचे वर्ग के लोग केस को मोड़ते हैं।
इस तरह की हत्या के पीछे सामजिक जाल बहुत गहरा है, जिसमें सशक्त वर्ग का फायदा है।
हमें सच्ची जांच की माँग करनी चाहिए, नहीं तो बहुत से मामले अनसुलझे रहेंगे।
ONE AGRI
सित॰ 23, 2025 AT 15:28 अपराह्नदेखिए, हमारे देश में जब तक पारिवारिक उदारता नहीं होगी, तब तक महिला एथलीट की सुरक्षा की बात ही नहीं होगी।
पिता का अधिकार नहीं कि वह अपनी बेटी की सपनों को मार सके, यही हमारी सांस्कृतिक विरासत का मूल सिद्धान्त है।
सरकार को तुरंत कड़े कानूनी प्रावधान बनाने चाहिए जो पिता के इस तरह के 'जुश' को अपराध की श्रेणी में रखें।
साथ ही, हमारे स्कूल और कॉलेजों में महिला सशक्तिकरण के पाठ्यक्रम अनिवार्य करने चाहिए।
ऐसे कदमों से ही अगली पीढ़ी को ऐसी त्रासदी से बचाया जा सकता है।
वर्तमान में मीडिया का सहयोग भी आवश्यक है, क्योंकि प्रकाशन से ही सामाजिक बदलाव की शुरुआत होती है।
आइए, हम सब मिलकर इस दिशा में आवाज़ उठाएँ और राधिका के नाम को सम्मानित करें।
Himanshu Sanduja
सित॰ 23, 2025 AT 18:06 अपराह्नऐसा अपराध कभी नहीं दोहराया जाना चाहिए।