मिशन: क्या, कब और क्यों
कजाख़स्तान के ऐतिहासिक बायकोनूर कॉस्मोड्रोम से रूस ने 20 अगस्त 2025 को अपने जैविक अनुसंधान उपग्रह Bion-M No. 2 को सोयुज 2.1b रॉकेट के जरिये उड़ा दिया। स्थानीय समय के मुताबिक 10:13 रात को हुई इस उड़ान ने 30 दिन की ओरबिटल यात्रा की शुरुआत की, जिसमें जीवित नमूनों और सामग्री विज्ञान के प्रयोग साथ जा रहे हैं।
स्पेसक्राफ्ट को करीब 97 डिग्री झुकाव वाली लगभग वृत्ताकार कक्षा में स्थापित किया गया है। यह ध्रुव से ध्रुव तक जाने वाला ट्रैक है, इसलिए पेलोड को पृथ्वी के उच्च अक्षांश क्षेत्रों में अधिक ऊर्जावान कणों का सामना करना पड़ेगा। रूसी वैज्ञानिकों के मुताबिक इस कक्षा में कॉस्मिक रेडिएशन का स्तर 2013 की Bion-M No. 1 उड़ान की तुलना में कम से कम दस गुना तक अधिक रिकॉर्ड किया जा सकता है।
इस बार का पेलोड असाधारण रूप से विविध है—75 चूहे जिनमें आंतरिक मॉनिटरिंग चिप लगाए गए हैं, 1,500 फल मक्खियाँ (ड्रोसोफिला), पौधे, सूक्ष्मजीव, सेल कल्चर और बीज। साथ ही 16 टेस्ट ट्यूब में चंद्र धूल/चट्टान के सिमुलेंट रखे गए हैं, जो चांद के उच्च अक्षांश क्षेत्रों की रेजोलिथ जैसी विशेषताओं की नकल करते हैं। यह सिमुलेंट वर्नाडस्की इंस्टीट्यूट और IMBP की टीमों ने तैयार किया है, ताकि देखा जा सके कि वैक्यूम और विकिरण में धूल कैसे चार्ज होती है, जमती है, या क्लंप बनाती है—यानी भविष्य में चंद्र सतह पर निर्माण की व्यावहारिक चुनौतियाँ क्या होंगी।
मिशन का वैज्ञानिक संचालन रूसी एकेडमी ऑफ साइंसेज के Institute of Medical and Biological Problems (IMBP) और Space Research Institute (IKI) कर रहे हैं। दर्जन भर से अधिक प्रयोग तैयार हैं—कुछ शुद्ध बायोमेडिकल, कुछ जेनेटिक्स, कुछ लाइफ-सपोर्ट और कुछ मटेरियल साइंस पर केंद्रित। मकसद साफ है: माइक्रोग्रैविटी और रेडिएशन के संयुक्त असर को लंबी अवधि तक मापना, और लौटने के बाद रिकवरी की जैविक प्रक्रियाओं को समझना।
सोयुज 2.1b रूस का विश्वसनीय मध्यम क्षमता वाला रॉकेट है, जिसकी डिजिटल गाइडेंस और हाई-परफॉर्मेंस थर्ड-स्टेज इंजन (RD-0124) सटीक कक्षा-स्थापन के लिए जाने जाते हैं। बायोन-एम प्लेटफॉर्म एक रीकवरबल डिसेंट कैप्सूल लिए होता है—यही वह हिस्सा है जो 30 दिन बाद पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करके पैराशूट की मदद से स्टेप्प क्षेत्र में उतरता है, ताकि जीवित नमूनों और सैंपल्स को तुरंत लैब में ले जाया जा सके।
स्पेसक्राफ्ट के अंदर ऑटोमेटेड लाइफ-सपोर्ट सिस्टम हैं—खान-पान, पानी की आपूर्ति, तापमान और वेंटिलेशन का नियंत्रण। पशु कल्याण के मानकों के तहत ह्यूमेन एंडपॉइंट्स, कैमरों से वीडियो मॉनिटरिंग और रिमोट टेलीमेट्री का सेटअप है। आमतौर पर ऐसे अभियानों में जमीनी लैब में समान जनसंख्या के “ग्राउंड कंट्रोल” समूह भी रखे जाते हैं, ताकि स्पेस और धरती की स्थितियों का साफ-साफ फर्क नापा जा सके।
डेटा-डाउनलिंक खिड़कियों में बायो-टेलीमेट्री, पर्यावरण नियंत्रण के पैरामीटर, और डोज़ीमीटर रीडिंग्स भेजी जाती हैं। डोज़ीमेट्री के लिए टिश्यू-इक्विवेलेंट सेंसर और सॉलिड-स्टेट डिटेक्टर जैसे उपकरण उपयोग में होते हैं, जो बताती हैं कि कुल विकिरण डोज़, ऊर्जावान कणों के फ्लक्स और सौर गतिविधि में बदलावों का वास्तविक प्रभाव क्या है।
- बायो पेलोड: 75 चूहे (इम्प्लांटेड चिप्स के साथ), 1,500 ड्रोसोफिला, पौधे, सूक्ष्मजीव, सेल कल्चर, बीज
- मटेरियल पेलोड: 16 टेस्ट ट्यूब चंद्र धूल/चट्टान सिमुलेंट
- कक्षा: ~97° झुकाव, लगभग वृत्ताकार, 30 दिन का मिशन
- उद्देश्य: अनुकूलन, रेडिएशन संवेदनशीलता, पीढ़ीगत बदलाव, चंद्र निर्माण के लिए धूल का व्यवहार

विज्ञान की परतें: शरीर, जीन और चंद्र आधार की तैयारी
सबसे ज्यादा दिलचस्प हिस्सा है—एक साथ “जीवविज्ञान + पर्यावरण” का मूल्यांकन। चूहों में लगे माइक्रो-चिप्स दिल की धड़कन, शरीर का तापमान, गतिविधि स्तर और कभी-कभी मांसपेशी/हड्डी से जुड़े बायोमार्कर तक रिकॉर्ड कर सकती हैं। माइक्रोग्रैविटी में कैल्शियम मेटाबॉलिज़्म बदलता है, हड्डी का घनत्व घटता है और कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम नए संतुलन की तलाश करता है। इन संकेतों से लंबी उड़ानों के लिए व्यावहारिक काउंटरमेज़र्स—जैसे रेजिस्टिव एक्सरसाइज़, पोषण रणनीति, या फार्माकोलॉजिकल शील्डिंग—बनाने में मदद मिलती है।
ड्रोसोफिला इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उनकी जीवन-चक्र अवधि छोटी है—करीब 10 दिन में एक पीढ़ी। 30 दिन के मिशन में कई पीढ़ियाँ देखी जा सकेंगी, जिससे जेनेटिक और एपिजेनेटिक बदलावों का अध्ययन संभव है। रेडिएशन-प्रेरित DNA डैमेज, रिपेयर पाथवे और विकासात्मक प्रभावों की मैपिंग सीधे मानव जोखिम मॉडलिंग में योगदान देती है।
पौधों और बीजों के प्रयोग क्लोज़्ड-लूप लाइफ सपोर्ट के नजरिये से अहम हैं। रूट ग्रोथ, फोटो-ट्रोपिज़्म और बीज अंकुरण पर माइक्रोग्रैविटी का असर यह बताता है कि स्पेस हैबिटेट्स में खाद्य और ऑक्सीजन चक्र को स्थिर रखने के लिए किन किस्मों और किन परिस्थितियों की जरूरत होगी। सूक्ष्मजीव और सेल कल्चर यह समझाते हैं कि माइक्रोबायोम और सेलुलर स्तर पर तनाव-प्रतिक्रिया कैसे बदलती है—उदाहरण के तौर पर, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस मार्कर्स और सेल सायकल में रुकावटें।
चंद्र धूल सिमुलेंट्स वाले ट्यूब्स भविष्य के चंद्र निर्माण की व्यावहारिकता पर रोशनी डालेंगे। क्या वैक्यूम और रेडिएशन में धूल के कण आसानी से एक-दूसरे से चिपकते हैं? क्या इलेक्ट्रोस्टैटिक चार्जिंग रोबोटिक उपकरणों को जाम कर सकती है? क्या सौर तापमान-चक्र से धूल “सिंटर” होकर ईंट जैसी संरचनाएँ बना सकती है? इन सवालों के जवाब चंद्र सतह पर 3D-प्रिंटिंग, रेगोलिथ-आधारित ठिकानों और धूल-मिटिगेशन सिस्टम की डिजाइन को दिशा देंगे।
रेडिएशन की बात करें तो, ध्रुवीय कक्षा में उपग्रह ऑरोरल जोन और साउथ अटलांटिक एनोमली जैसी जगहों से गुजरते हैं, जहाँ ऊर्जावान कणों का फ्लक्स बढ़ जाता है। इसी वजह से यह उड़ान “लंबी दूरी की यात्रा का कठोर अभ्यास” मानी जा सकती है—हालाँकि यह लो अर्थ ऑर्बिट में है, पर एक्सपोज़र प्रोफाइल डीप-स्पेस मिशनों के लिए संरक्षात्मक रणनीतियों का परीक्षण करने लायक डेटा देता है।
यह प्रयास रूस की बायोन परंपरा का विस्तार है, जिसकी जड़ें सोवियत काल के बायोसैटेलाइट्स तक जाती हैं। 2013 की Bion-M No. 1 के बाद यह अगली पूर्णकालिक उड़ान है, और इस बार कक्षा का चुनाव ही प्रयोगों को अधिक चुनौतीपूर्ण और सूचनाप्रद बना रहा है। अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में देखें तो नासा का BioSentinel (यीस्ट-आधारित रेडिएशन प्रयोग) डीप स्पेस में विकिरण की जीववैज्ञानिक समझ बढ़ाने की कोशिश है; रूसी मिशन उसी प्रश्न का लो अर्थ ऑर्बिट में ऊँचे एक्सपोज़र के साथ सूक्ष्म स्तर पर विस्तृत चित्र बना रहा है।
प्रयोगशाला से बाहर, इसका असर हमारे रोजमर्रा के स्वास्थ्य विज्ञान पर भी पड़ता है। रेडिएशन-प्रोटेक्शन बायोमार्कर बनें तो कैंसर रेडियोथेरेपी में स्वस्थ ऊतकों की रक्षा बेहतर की जा सकती है। माइक्रोग्रैविटी-प्रेरित हड्डी क्षरण के मॉडल ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज/रोकथाम की रणनीतियों को मजबूती देते हैं। इसी तरह, इम्प्लांटेबल सेंसर और दूरस्थ निगरानी तकनीकें पृथ्वी पर क्रॉनिक केयर और टेलीमेडिसिन में सीधे उपयोगी हैं।
दीर्घकालिक नजरिये से, चंद्रमा पर मानव उपस्थिति की तैयारी—जैसे चीन-नेतृत्व वाली इंटरनेशनल लूनर रिसर्च स्टेशन (ILRS) पहल में रूस की साझेदारी—इसी तरह के डेटा पर टिकती है। बेस बनाना सिर्फ रॉकेट और रोबोट का खेल नहीं है; यह इस बात की भी कसौटी है कि धूल, विकिरण, माइक्रोग्रैविटी और सीमित संसाधनों के बीच जैव-प्रणालियाँ टिकाऊ ढंग से चल सकती हैं या नहीं। Bion-M No. 2 जैसे मिशन वही “लाइफ सपोर्ट और मानव-सुरक्षा” की बॉडी ऑफ एविडेंस बनाते हैं, जिसके बिना चंद्र आधार महज़ एक इंजीनियरिंग डेमो रह जाएगा।
अब नजर रहेगी 30 दिन की उड़ान के दौरान आने वाले टेलीमेट्री ट्रेंड्स, सौर गतिविधि के स्पाइक्स के साथ डोज़ प्रोफाइल में बदलाव, और रीकवरी के तुरंत बाद होने वाली बायोकेमिकल/हिस्टोलॉजी जांचों पर। अगर डेटा उम्मीद के मुताबिक समृद्ध निकला, तो यह मिशन अंतरिक्ष चिकित्सा, जेनेटिक्स और चंद्र निर्माण—तीनों मोर्चों पर ठोस दिशा देगा।