बुधवार दोपहर 12 बजे, शिवपुरी के कलेक्ट्रेट परिसर में एक अजीब सी चुप्पी छा गई। फिर अचानक घंटियाँ बजीं, सीटियाँ बजीं, और लोग जमीन पर लेट गए — नहीं, कोई भूकंप नहीं आया था। बल्कि, 11वीं एनडीआरएफ बटालियन ने शिवपुरी के आपदा तैयारी के लिए एक मॉक ड्रिल शुरू कर दी थी। ये अभ्यास सिर्फ एक अभ्यास नहीं था — ये एक जागरूकता का संकेत था कि भारत के इन शहरों में, जहाँ भूकंप का खतरा नजदीक है, लोगों की जान बचाने की तैयारी कितनी गंभीर है।
क्यों शिवपुरी? भूकंप का खतरा और जिला प्रशासन की भूमिका
मध्य प्रदेश का ये छोटा सा जिला, जिसकी आबादी लगभग 3.5 लाख है, भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार भूकंप जोन III में आता है। यानी यहाँ आने वाले भूकंप न केवल भवनों को नुकसान पहुँचा सकते हैं, बल्कि स्कूल, अस्पताल और सरकारी इमारतों को भी तबाह कर सकते हैं। यही कारण है कि शिवपुरी कलेक्ट्रेट — जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का मुख्यालय — इस अभ्यास का स्थान बना। कलेक्टर यहाँ सिर्फ एक अधिकारी नहीं, बल्कि आपदा के समय जीवन-मरण के फैसले लेने वाली पहली टीम के नेता होते हैं।
2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत, जिला स्तर पर आपदा प्रतिक्रिया की जिम्मेदारी कलेक्टर के हाथों में होती है। और इसीलिए, जब एनडीआरएफ की टीम बनारस से आती है, तो यह सिर्फ एक बाहरी सहायता नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय समन्वय का प्रतीक है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी से आई यह टीम, मध्य प्रदेश के जिले में अभ्यास कर रही थी — एक ऐसा अनुभव जो अक्सर सिर्फ अखबारों में दिखता है, लेकिन यहाँ वास्तविकता बन गई।
अभ्यास का दृश्य: लोग जमीन पर, टीम ढहती इमारतों में
अभ्यास शुरू हुआ तो सभी कर्मचारी तुरंत अपने मेज़ों के नीचे छिप गए। फिर एक अचानक आवाज़ — ‘भूकंप!’ — और सभी ने अपने सिर ढक लिए। ये नियम नहीं, बल्कि एक अनुभव था। असिस्टेंट कमांडेंट एस.ए. सिकंदर ने बताया, ‘हम यहाँ नहीं सिखा रहे कि कैसे भागें। हम सिखा रहे हैं कि कैसे रुकें, कैसे सांस लें, और कैसे बचाव के लिए तैयार रहें।’
फिर टीम ने एक नकली ढही हुई इमारत के अंदर प्रवेश किया। उपनिरीक्षक राम सिंह और अजय सिंह ने लोहे के टुकड़ों के नीचे दबे ‘बलि’ को निकालने का प्रदर्शन किया। एक जवान ने एक बच्चे के लिए जल और बर्फ का बैग लगाया — जिसे अस्पताल जाने तक उसके शरीर का तापमान बनाए रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एक और टीम ने रेडियो के माध्यम से अस्पताल को संदेश भेजा: ‘दो व्यक्ति फंसे हैं, एक बाहरी चोट, एक आंतरिक चोट — तुरंत टीम भेजें।’
अन्य संस्थाओं की भागीदारी: एकल टीम नहीं, एक नेटवर्क
ये अभ्यास सिर्फ एनडीआरएफ का नहीं था। भूकंप आपदा मॉक ड्रिल में स्थानीय पुलिस, अग्निशमन दल, और एक अज्ञात स्वयंसेवी संगठन भी शामिल थे। यही बात यूट्यूब वीडियो ‘भूकम्प आपदा में बचाव कार्य पर एनडीआरएफ व अन्य संस्थाओ ने कलेक्ट्रेट में किया माँक अभ्यास’ में भी साफ दिखी। लेकिन यहाँ एक बात ध्यान देने लायक है — इन संस्थाओं के बीच संचार की कोई नियमित व्यवस्था नहीं है। अभ्यास के बाद एक अधिकारी ने कहा, ‘हम एक दूसरे के रेडियो चैनल नहीं जानते। अगली बार एक साझा नेटवर्क बनाना होगा।’
क्यों ये अभ्यास जरूरी है? एक आंकड़ा बताता है
2023 में गुजरात में आए भूकंप में 70% लोगों की मौत इसलिए हुई क्योंकि लोग घरों के बाहर भाग रहे थे। जबकि जिन्होंने ‘ड्रॉप, कवर, होल्ड ऑन’ का नियम माना, उनमें से 90% बच गए। ये आंकड़ा भारतीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के रिपोर्ट में दर्ज है। शिवपुरी के अभ्यास में इसी नियम को बार-बार दोहराया गया।
और ये सिर्फ एक दिन का अभ्यास नहीं। एनडीआरएफ के अनुसार, हर बटालियन साल में कम से कम चार बार ऐसे अभ्यास करती है। शिवपुरी में ये दूसरा अभ्यास था — पहला अप्रैल 2024 में हुआ था। तब भी यही टीम आई थी। अब यही टीम अगले महीने ग्वालियर और इंदौर में जाएगी।
अगला कदम: स्कूलों और आम आदमी तक पहुँच
अभ्यास के बाद एक बड़ा सवाल उठता है — ये तकनीकें सिर्फ कलेक्ट्रेट के अधिकारियों तक ही सीमित हैं? नहीं। कलेक्टर ने घोषणा की कि अगले तीन महीनों में जिले के 47 सरकारी स्कूलों में छात्रों के लिए भूकंप अभ्यास शुरू किए जाएंगे। एक शिक्षक ने कहा, ‘हम बच्चों को सिखाते हैं कि बाढ़ में कैसे बचें। लेकिन भूकंप? हमने अभी तक इसके बारे में कुछ नहीं सीखा।’
यही अंतर है — जब आपदा की तैयारी सिर्फ सरकारी इमारतों तक सीमित होती है, तो वह बेकार हो जाती है। जब तक एक आम घर की महिला नहीं जानती कि बर्फ का बैग क्यों लगाया जाता है, तब तक ये अभ्यास सिर्फ एक नाटक होगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
भूकंप के दौरान आम आदमी को क्या करना चाहिए?
भूकंप के दौरान आपको तुरंत ‘ड्रॉप, कवर, होल्ड ऑन’ का नियम अपनाना चाहिए — जमीन पर गिर जाएं, मेज या ठोस फर्नीचर के नीचे छिप जाएं, और अपना सिर और गर्दन को सुरक्षित रखें। भागने की कोशिश न करें, खासकर सीढ़ियों या खिड़कियों के पास न रुकें। अगर आप बाहर हैं, तो इमारतों, बिजली के तारों और पेड़ों से दूर रहें।
एनडीआरएफ की टीम बनारस से शिवपुरी क्यों आई?
एनडीआरएफ की 11वीं बटालियन वाराणसी में स्थित है और इसकी जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों को कवर करना है। शिवपुरी भूकंप जोन III में आता है, और यहाँ की आबादी बढ़ रही है। इसलिए इस बटालियन को इस क्षेत्र में नियमित अभ्यास करने का निर्देश दिया गया है।
क्या शिवपुरी में भूकंप का खतरा वास्तविक है?
हाँ। भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार, मध्य प्रदेश के 15 जिलों में भूकंप जोन III या IV है। शिवपुरी इनमें से एक है। 2020 में रतलाम में 4.2 आयाम का भूकंप आया था, जिससे कई घरों में दरारें आ गईं। ये एक चेतावनी है — भूकंप नहीं आएगा, बल्कि आएगा ही।
इस अभ्यास के बाद क्या बदलाव आएंगे?
कलेक्टर ने घोषणा की है कि अगले तीन महीनों में जिले के सभी सरकारी स्कूलों में छात्रों के लिए भूकंप अभ्यास शुरू किए जाएंगे। साथ ही, जिला स्तर पर एक साझा रेडियो नेटवर्क बनाया जाएगा, जिसमें पुलिस, अग्निशमन और स्वयंसेवी दल शामिल होंगे। ये एक छोटा कदम है, लेकिन जान बचाने के लिए बहुत बड़ा।