डैथ ओवर बॉलिंग की वर्तमान स्थिति
जैसे‑जैसे T20I फॉर्मेट में स्कोरिंग रेट बढ़ता जा रहा है, डैथ ओवर (आखिरी पाँच ओवर) में रन रोकना टीम की जीत या हार का निर्धारक बन गया है। एशिया कप 2025 में भारत ने दो मीट में इस हिस्से में कमजोर प्रदर्शन दिखाया – पाकिस्तान के खिलाफ अंतिम तीन ओवर में 37 रन और ओमन के खिलाफ अंतिम चार ओवर में 36 रन लाने का सामना करना पड़ा। यह आँकड़े न केवल भारतीय दर्शकों को निराश कर गया, बल्कि विश्लेषकों को भी फिर से सवाल उठाने पर मजबूर कर दिया कि हमारे पास कब तक विश्व स्तर के डैथ ओवर बॉलिंग का एक ठोस विकल्प रहेगा।
जसप्रीत बुमराह को हमेशा से एक "डैथ ओवर जीनियस" माना गया है। उसकी बॉलिंग का प्रतिबिंब केवल गति में नहीं, बल्कि कॉम्बिनेशन और सटीक लैंडिंग में है। पिछले दो वर्षों में बुमराह ने 20+ टैक्टिकल डॉट्स, कई बार 10+ रन की औसत से कम रेट के साथ अपनी टीम को बचाया है। फिर भी, टीम की कुल डैथ ओवर रणनीति में असंतुलन मौजूद है – दो या तीन बॉलरों पर अधिक निर्भरता, जबकि दूसरे फिक्शनली कम भरोसेमंद लगते हैं।

टॉप 5 डैथ ओवर बॉलर्स में बांग्लादेशी खिलाड़ियों का स्थान
खास बात यह है कि इस साल का आँकड़ा बांग्लादेशी बॉलरों को भी उजागर करता है। डेटा एनालिस्टों ने बताया कि बांग्लादेश की लीग में दो नामांकित बॉलर, मोहम्मद शाकिब और टारिक शुगर, लगातार टॉप 5 में दिखे हैं। शाकिब के पास 19.2 औसत रन/ओवर और शुगर के पास 19.6 औसत रन/ओवर है – दोनों ने आखिरी पाँच ओवर में जिंदा रहने की कोशिश में अपने विरोधियों को 30‑35 रन से अधिक नहीं देगा दिया। इन दोनों के अलावा एक "अनजाना" बॉलर को भी सूची में देखा गया है, जिसके आँकड़े प्राइवेट टूर्नामेंट से लिए गये हैं – वह 20.1 रन/ओवर का औसत रखता है, जो प्रमुख लीग बॉलरों की तुलना में काफी प्रतिस्पर्धी है।
इन बांग्लादेशी बॉलरों का उदय कई कारणों से है: नियमित घरेलू मैचों में उन्हें डैथ ओवर के दबाव का सामना करने का अवसर मिला, कोचिंग स्टाफ ने इन ओवरों में विशिष्ट प्लानिंग को जोड़ा, और मानसिक सुदृढ़ता पर विशेष ध्यान दिया। उनका सबसे बड़ा हथियार है विविध पिच पर भी स्पिन और पेस दोनों का बॅलेंस्ड उपयोग, जिससे बल्लेबाजों को किताबें लिखनी पड़ती हैं।
जब भारत इस मुद्दे पर घबराता है, तो बांग्लादेश की रणनीति सिखने लायक बनती है। कई एक्सपर्ट सुझाव दे रहे हैं कि भारतीय टीम को बूमराह के साथ दो या तीन विश्वस्त बॉलरों को डैथ ओवर में मिलकर उपयोग करना चाहिए, ताकि किसी एक बॉलर पर अत्यधिक दबाव न पड़े। साथ ही, बेंच के युवा बॉलरों को डैथ ओवर सिमुलेशन में अधिक बार शामिल करके उनका आत्मविश्वास बढ़ाया जा सकता है।
एशिया कप के बाद आने वाले ICC विश्व कप क्वालिफायर में यह सवाल फिर से उठेगा – कौन सी टीम अपनी आखिरी पाँच ओवर में दबाव को संभाल पाएगी? बुमराह की महिमा अभी भी चमकती है, लेकिन बांग्लादेशी बॉलरों की निरंतरता और लटपटाए बिना प्रदर्शन शायद अगले बड़े टूर्नामेंट में ठोस प्रतिस्पर्धा दे सके। यह देखना बाकी है कि भारतीय चयन समिति इन आँकड़ों को कैसे पढ़ती है और अपनी टीम में किस बदलाव को अपनाती है।