भारत सरकार ने अप्रत्याशित रूप से दो दिन पहले आयोजित की गई यूजीसी-नेट परीक्षा को रद्द कर दिया। इस फैसले का कारण नेशनल साइबर क्राइम थ्रेट एनालिटिक्स यूनिट (NCCTAU) से मिली संभावित खतरे की सूचना बताया गया है। यह परीक्षा एक नए पेन और पेपर फॉर्मेट में आयोजित की गई थी और इसमें रिकॉर्ड 1.1 मिलियन उम्मीदवार पंजीकृत थे। अब इस परीक्षा की नई तिथि की घोषणा अभी तक नहीं की गई है।
इस रद्दीकरण ने पहले से ही चल रहे नीट-यूजी मेडिकल प्रवेश परीक्षा विवाद को और बढ़ा दिया है। नीट-यूजी परीक्षा में अनियमितताओं और पेपर लीक के आरोप लगे हैं, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ग्रेस मार्क्स मुद्दे से प्रभावित उम्मीदवारों के लिए फिर से परीक्षा आयोजित करने का आदेश दिया है।
विपक्षी दल, जैसे समाजवादी पार्टी और कांग्रेस, ने इस स्थिति को लेकर सरकार की आलोचना की है। उनका दावा है कि सरकार इस मुद्दे को सही से नहीं संभाल रही है। यूजीसी-नेट परीक्षा के रद्द होने से यह विवाद और बढ़ गया है, जिससे विपक्षी नेताओं और जनता के बीच सरकार के प्रति निराशा और रोष बढ़ रहा है।
राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी की भूमिका पर सवाल
नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) की भूमिका भी इस विवाद में चर्चा का विषय बन गई है। एनटीए के द्वारा दोनों परीक्षाओं की व्यवस्थाओं में खामियां और अनियमितताएं सामने आ रही हैं, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। परीक्षा आयोजित करने में हो रही इन समस्याओं के कारण छात्र और अभिभावक चिंतित और नाराज हैं।
संसद में भारी हंगामा
इस मुद्दे पर संसद में भी भारी हंगामा हुआ। विपक्षी सांसदों ने सरकार पर चुटकियाँ लेते हुए कहा कि यह सरकार की प्रशासनिक विफलता का प्रतीक है। उन्होंने मांग की कि सरकार परीक्षा प्रणाली में सुधार के लिए तत्काल कदम उठाए।
सरकार की ओर से शिक्षा मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया कि एनटीए की जांच जारी है और भविष्य में ऐसी घटनाएँ ना हों, इसके लिए सख्त कदम उठाए जाएंगें। हालांकि, इससे विपक्ष की आलोचना कम नहीं हुई, जिन्होंने इसे सरकारी रिपोर्टिंग और पारदर्शिता की कमी के रूप में देखा।
छात्रों का गुस्सा
उम्मीदवारों और उनके परिवारों के बीच भी भारी नाराजगी है। कई छात्र, जो इस परीक्षा के लिए महीनों से तैयारी कर रहे थे, अब इस रद्दीकरण के बाद निराश हैं। उनके भविष्य की चिंताओं ने उन्हें मानसिक तनाव में डाल दिया है।
सोशल मीडिया पर छात्रों ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए सरकार से मांग की है कि जल्द से जल्द नई तिथि की घोषणा की जाए और परीक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।
विपक्ष का विरोध
विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमला बोल दिया है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने इसे छात्रों के साथ अन्याय करार दिया है। उनका कहना है कि सरकार को इन मुद्दों को हल करने के लिए अधिक जिम्मेदार बनना चाहिए।
समाजवादी पार्टी के प्रमुख नेता अखिलेश यादव ने कहा कि यह सरकार की नाकामी है कि वे छात्रों को एक उचित परीक्षा प्रणाली नहीं दे पा रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि छात्रों का भविष्य अंधकार में डालना सरकार की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए।
भागीदारी पार्टीयों ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है और उनके नेता इसे सरकार की अकर्मण्यता का परिणाम बता रहे हैं।
आगे का रास्ता
इस पूरी घटना ने शिक्षा प्रणाली और परीक्षा की विश्वसनीयता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकार को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि आगे चलकर ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो और छात्रों को सही और निष्पक्ष परीक्षा प्रणाली मिले।
शिक्षा विशेषज्ञ यह मानते हैं कि यदि सरकार और शिक्षा मंत्रालय ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया, तो यह भविष्य में और बड़े विवाद का रूप ले सकता है। छात्रों के मनोबल को संतुलित रखने और उनकी भविष्य की तैयारी को प्रभावित ना करने के लिए जरूरी है कि जल्द से जल्द परीक्षा की नई तारीख और अन्य सुधारात्मक कदमों की घोषणा की जाए।