देश के अलग-अलग कोनों में रक्षा बंधन की बातें ही कुछ और हैं
रक्षा बंधन सिर्फ एक राखी बांधने का त्योहार नहीं है। भारत के हर राज्य में इसे मनाने का तरीका, रंग और मिजाज इतना अलग है कि आपको हैरानी होगी। एक तरफ गुजरात में बचपन से याद आता है कि कैसे इस दिन रक्षा बंधन के साथ साथ पवित्रोपाना नाम की एक खास पूजा होती है। यहां लोग मंदिरों में भगवान शिव को पानी, दूध चढ़ाते हैं, पिछले पापों से मुक्ति और नई शुरुआत की कामना करते हैं। इस सबके बीच बहनों-भाइयों का राखी बंधवाने का सिलसिला जारी रहता है।
अब महाराष्ट्र की बात करें तो यहां त्योहार का स्वाद और माहौल दोनों का ही रंग अलग है। मछुआरा समुदाय इसे नारियल पूर्णिमा के रूप में मनाता है। समुद्र किनारे पूजा होती है, नारियल चढ़ाकर समुद्र देवता वरुण से सुरक्षा और अच्छे मछली के जाल की दुआ मांगते हैं। पूरे परिवार की मौजूदगी में इस माहौल में बहनें भाइयों को राखी बांधती हैं, सब साथ बैठकर खास पकवान खाते हैं।
रक्षाबंधन की रंगीन परंपराएं, रिश्तों की नई परिभाषा
राजस्थान में तो बहनों के पास भाइयों के लिए सिर्फ एक ही राखी बांधना काफी नहीं होता। यहां लंबी, भड़कीली लुंबा राखी बांधने की खास रिवाज है, जो भाई के बाइसेप्स पर बांधी जाती है। इसमें चांदी-स्वर्ण के तावीज़ भी होते हैं और बहनें कई भाइयों व समाज के सम्मानित पुरुषों को राखी बांधती हैं।
दक्षिण भारत यानी तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में इसे अवनि अवित्तम (या उपाकर्म) के नाम से जानते हैं। ब्राह्मण समुदाय के लोगों के लिए यह दिन बहुत अहम—यही दिन होता है नया यज्ञोपवीत धारण करने का। यहां धार्मिक रीति-रिवाजों के बीच भाई-बहन का प्यार भी मनाया जाता है, साथ में घर का खाना, खासकर पायसम और वडा खाने की परंपरा है। कर्नाटक और तेलुगु इलाकों में बेटियां अपने पिताओं को भी राखी बांधती हैं, दोस्तों-परिचितों को भी राखियाँ बांटी जाती हैं। यहाँ इसे सोऊटी भी कहते हैं, परिवार से बाहर समाज तक रक्षा की भावना जुड़ी है।
पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों में रक्षा बंधन झूलन यात्रा के साथ मनाया जाता है। कृष्ण-राधा की मूर्तियों को झूलों में सजाना, मंदिरों में कीर्तन, फिर राखी बांधना—यहां त्योहार भक्ति और भाई-बहन के रिश्तों का संगम बन जाता है।
कृषि-प्रधान राज्यों जैसे बिहार, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में इसे कजरी पूर्णिमा या शरावणी के नाम से मनाते हैं। गांवों की महिलाएं इस दिन अनाज बोने और उसे साधने की प्रतिज्ञाएं करती हैं, भाई-बहन के पारंपरिक रिश्ते के साथ-साथ फसलों की खुशहाली की भी दुआ होती है।
हरियाणा में तो रक्षा बंधन के दिन पतंगबाजी का मजा शादीशुदा और बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सब उड़ाते हैं, साथ में राखी बांधने की रस्म अटूट रहती है। वहीं पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के घरों में मस्ती, मिठाई, आरती, तिलक और बहनों की दुआएं गूंजती हैं। भाई अपने वादों के साथ, बहनों को गिफ्ट देते हैं।
छत्तीसगढ़ के कुछ आदिवासी समुदायों में राखी सिर्फ परिवारों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि पूरे समुदाय में बांटी जाती है। यहां हर कोई, एक-दूसरे की सुरक्षा और भलाई की कामना के साथ राखी बांधता है।
कहने को चाहे कितनी अनगिनत परंपराएं और विविधता हो, लेकिन हर कोने में एक ही सोच—बहन का प्यार, भाई की सुरक्षा की पुकार और रिश्तों के बीच नया विश्वास। यही ढूंढा जाओ, तो यही असली भारत है।
Tejas Srivastava
अग॰ 8, 2025 AT 18:49 अपराह्नरक्षा बंधन का रंगीला जादू हर राज्य की मिट्टी में घुला‑घुला है!!! गुजराती पवित्रोपाना पूजा में जल‑दूध के साथ मन के हार मोती बहते हैं, और भाई‑बहन की रेखा बंधती है… हर कोने में उत्सव की ध्वनि गूँजती है, जैसे दिल की धड़कनें ताल‑ताल पर हों!!!
JAYESH DHUMAK
अग॰ 11, 2025 AT 21:29 अपराह्नरक्षा बंधन का उत्सव भारत की सांस्कृतिक विविधता का अद्भुत प्रतिबिंब है। प्रत्येक राज्य इस पावन अवसर को अपनी विशिष्ट रीति‑रिवाजों से सजाता है, जिससे एक समृद्ध परिप्रेक्ष्य उत्पन्न होता है। गुजरात में पवित्रोपाना पूजा का महत्व अत्यधिक है, जहाँ जल‑दूध अर्पित कर आत्मा की शुद्धि की जाती है। महाराष्ट्र की किनारों पर नारियल पूर्णिमा के रूप में मनाई जाने वाली यह परम्परा समुद्र की असीम शक्ति को सम्मान देती है। राजस्थान में भड़कीली लुंबा राखी दायीं की दृढ़ता और साहस को दर्शाती है, जो भाई के बाइसेप्स पर बहादुरी का प्रतीक बनती है। दक्षिण भारत के कई हिस्सों में इसे अवनि अवित्तम के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है, जहाँ यज्ञोपवीत का अनुष्ठान विशेष महत्व रखता है। बंगाल, ओडिशा और झारखंड में झूलन यात्रा के साथ इस उत्सव को भक्ति संगीत में बदल दिया जाता है। मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ में कजरी पूर्णिमा के नाम से इसे कृषि‑सम्बंधित आशीर्वाद के रूप में मनाया जाता है। हरियाणा में पतंग‑उड़ाना युवा शक्ति का प्रतीक बन जाता है, जबकि पंजाब में मिठाइयों की मिठास भाई‑बहन के प्रेम को मधुर बनाती है। इस विविधता में एक ही सत्य निहित है कि रक्षा बंधन केवल एक रस्म नहीं, बल्कि सामाजिक बंधनों को मजबूत करने का माध्यम है। यह त्योहार सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है, जिससे समुदायों के बीच आपसी समझ विकसित होती है। उल्लेखनीय है कि कई क्षेत्रों में बहनें अपने पिता, दोस्त और रिश्तेदारों को भी राखी बांधती हैं, जो सामाजिक सुरक्षा के विस्तारित रूप को दर्शाता है। इस प्रकार का विस्तार यह दिखाता है कि भारतीय परम्पराएं निरंतर विकसित हो रही हैं, परन्तु मूल भावना अपरिवर्तित रहती है। रक्षा बंधन की यह विविधता राष्ट्रीय एकता को नई दिशा देती है, क्योंकि यह विविधता में सामंजस्य की भावना को सुदृढ़ करती है। अंत में, यह कहा जा सकता है कि इस त्योहार पर प्रत्येक राज्य की अनूठी झलक भारत की सांस्कृतिक समग्रता को प्रतिबिंबित करती है, जो एक समृद्ध और विविध राष्ट्र की पहचान को सुदृढ़ बनाती है।
Santosh Sharma
अग॰ 15, 2025 AT 00:09 पूर्वाह्नरक्षा बंधन के इस अवसर पर हर राज्य की अनोखी परम्परा हमें एक-दूसरे के इतिहास को समझने का नया दर्पण दिखाती है; यह सामाजिक एकता को सुदृढ़ करने का उत्कृष्ट साधन है।
yatharth chandrakar
अग॰ 18, 2025 AT 02:49 पूर्वाह्नविभिन्न प्रदेशों में राखी के रूप‑रंग जानने से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संस्कृति कितनी समावेशी है; यह विविधता हमें हीर‑धूप बनाती है।
Vrushali Prabhu
अग॰ 21, 2025 AT 05:29 पूर्वाह्नवाह! क्या बात है, इस पोस्ट में तो हर राज्य की रक्षाबंधन ढंग बिनाओस लग रहो हर, कभि पवित्रोपाना, कभि पत्ता रखीव, कभि झूला यात्रा… इत्तने जादुगीरी! फॉलो करो, बधाइयां!!
parlan caem
अग॰ 24, 2025 AT 08:09 पूर्वाह्नइतना सब लिखा, पर असली भावनाओं का ज़िक्र कहाँ?
Mayur Karanjkar
अग॰ 27, 2025 AT 10:49 पूर्वाह्नरक्षा बंधन पर वैरायटी कोडिंग इंडेक्स से देखी जाए तो यह सांस्कृतिक मोडुलरिटी का एक जीवंत केस स्टडी है।
Sara Khan M
अग॰ 30, 2025 AT 13:29 अपराह्नबहुत बढ़िया लेख! 🎉
shubham ingale
सित॰ 2, 2025 AT 16:09 अपराह्नरक्षा बंधन की धूम सब जगह है 😊
Ajay Ram
सित॰ 5, 2025 AT 18:49 अपराह्नभारत के विविध क्षेत्रों में मनाया जाने वाला रक्षा बंधन केवल पारिवारिक बंधन को ही नहीं, बल्कि सामाजिक समन्वय को भी संवारता है। पश्चिमी तट पर गुजरात की पवित्रोपाना से लेकर दक्षिणी कर्नाटक की सोऊटी तक, हर परम्परा में स्थानीय इतिहास की झलक मिलती है। इन रीति‑रिवाजों को समझने से हमें क्षेत्रीय पहचान की गहराई का अहसास होता है, जिससे राष्ट्रीय एकता की भावना बल पाती है। उल्लेखनीय है कि कई राज्य अपने स्थानीय मान्यताओं को आधुनिक जीवनशैली के साथ समायोजित कर रहे हैं, जैसे कि डिजिटल स्वरूप में राक्षी भेजना। इस प्रवृत्ति से सामाजिक दूरी कम होती है और बहन‑भाई के बंधन में नई परत जुड़ती है। कुछ क्षेत्रों में कर्मचारी वर्ग ने कार्यस्थल पर भी रक्षा बंधन का जश्न मनाना शुरू किया है, जिससे काम और संस्कृति का संतुलन बना रहा। कुल मिलाकर, यह विविधता भारत की बहुरंगी पहचान को साकार करती है और हमें एक दूसरे के साथ जुड़ने के नए तरीके सिखाती है।
Dr Nimit Shah
सित॰ 8, 2025 AT 21:29 अपराह्नरक्षा बंधन की यह विविधता हमारे देश की ताकत का प्रतीक है, बिल्कुल गरम मसाला जैसी!
Ketan Shah
सित॰ 12, 2025 AT 00:09 पूर्वाह्नरक्षा बंधन का हर क्षेत्रीय आयाम सामाजिक संरचना में निहित मूल्यों को उजागर करता है; इसको समझना हमें विभिन्न सांस्कृतिक परतों से परिचित कराता है।
Aryan Pawar
सित॰ 15, 2025 AT 02:49 पूर्वाह्नरक्षा बंधन की विविधता एक ही धागे में बंधी है जो पूरे देश को जोड़ती है
Shritam Mohanty
सित॰ 18, 2025 AT 05:29 पूर्वाह्नक्या ये सभी रीति‑रिवाज इमानदारी से उभरे हैं या सरकारी एजेंडा का हिस्सा? इस पर सूक्ष्म जांच की जरूरत है।