हरियाणा चुनावों में 'जलेबी' ने कैसे बटोरी सुर्खियां
हरियाणा विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के साथ ही सोशल मीडिया पर 'जलेबी' का नाम अचानक से चर्चाओं में आ गया। यह चर्चा कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी के चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए एक बयान की वजह से थी, जिसमें उन्होंने हरियाणा कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा भेंट की गई 'मतुराम की जलेबी' को अपने जीवन की सबसे अच्छी जलेबी बताया था। राहुल ने इस स्वादिष्ट मिठाई के जरिए भारत भर में रोजगार उत्पन्न करने का भी सुझाव दिया था।
राहुल गांधी का सुझाव
राहुल गांधी का कहना था कि यह जलेबियाँ भारत और दुनिया के कोने-कोने में पहुंचनी चाहिए और इसे औद्योगिक स्तर पर तैयार किया जाना चाहिए। उनके लिए यह सिर्फ एक मिठाई नहीं थी, बल्कि भारतीय व्यंजन संस्कृति को व्यापक परिपूर्णता में प्रस्तुत करने का अवसर था। उन्होने इसे रोजगार का एक बड़ा साधन बनाने की बात कही, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे एक महज बयान समझा गया।
बीजेपी की मजाकिया प्रतिक्रिया
बीजेपी ने ना सिर्फ इस अवसर का राजनैतिक लाभ उठाया बल्कि इसे राहुल गांधी और कांग्रेस पर तंज कसने का भी जरिया बनाया। बीजेपी नेताओं ने तंज कसते हुए कहा कि "जलेबी बनाने वाली फैक्ट्रियां मौजूद नहीं हैं", और इसके जरिए राहुल गांधी के चुनावी वादों का मजाक उड़ाया।
जलेबी का ट्रेंडिंग मुहिम
चुनावी नतीजों के दिन, जब बीजेपि की सरकार बननी लगभग तय थी, जलेबियाँ फिर से सोशल मीडिया के मंचों पर ट्रेंड करती रहीं। चुनाव से ठीक तीन दिन पहले, राहुल गांधी ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट की थी जिसमें उन्होंने मतुराम की जलेबी की लाजवाब स्वाद का बखान किया था। यह वीडियो भी सोशल मीडिया के यूजर्स द्वारा जमकर शेयर किया गया।
बीजेपी की 'मीठी' जीत
राजनीतिक चुटकियों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जलेबी की बढ़ती चर्चा को बीजेपी की 'मीठी प्रतिशोध' के रूप में देखा गया। यह घटना ना सिर्फ कांग्रेस पार्टी बल्कि उनके समर्थकों के लिए भी एक सबक थी कि हल्के-फुल्के मुश्किले भी बड़ी परेशानियों में बदल सकती हैं।
आपसी तकरार में जनता को मिली सीख
इस पूरे घटनाक्रम ने जनता को यह समझने का मौका दिया कि किसी भी नेता के बयानों को सिर्फ आलोचना का शिकार बनाना ही राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा नहीं होना चाहिए। चुनाव भले ही बीजेपी ने जीता, लेकिन यह घटना भारतीय लोकतंत्र का एक नया स्तर भी प्रस्तुत करती है, जहां बयानबाजी और राजनीतिक किस्से भी चुनावी माहोल का एक हिस्सा बनते हैं।