जब संजय मल्होत्रा, गवर्नर Reserve Bank of India ने 1 अक्टूबर 2025 को RBI Monetary Policy Committee बैठकभारत समाप्त की, तो उन्होंने सर्वसम्मति से रेपो रेट को 5.50 % पर स्थिर रहने का निर्णय घोषित किया। यह दूसरा लगातार सत्र था जिसमें दर नहीं बदली, जबकि पिछले साल के फरवरी‑अप्रैल‑जून में कुल 100 आधार बिंदु की कटौती की गई थी।
पृष्ठभूमि और मौद्रिक नीति का इतिहास
2025 के पहले छः महीनों में RBI ने तीन बार रेपो रेट घटाकर 6.5 % से 5.5 % तक पहुंचाया था, जिससे आर्थिक गति को तेज़ करने की कोशिश की गई। इस बीच, भारत में जीएसटी (GST) सुधारों ने दैनिक सामानों की कीमतों को घटाया, जबकि विदेशी व्यापार में अमेरिकी राष्ट्रपति Donald Trump द्वारा नई टैरिफ़ नीति ने निर्यात व्यापार पर दबाव बना रखा था।
मुख्य निर्णय और आँकड़े
बैठक के बाद निकली मुख्य घोषणा इस प्रकार थी:
- रेपो रेट 5.50 % पर स्थिर
- स्टैंडिंग डिपाजिट फ़ेसिलिटी (SDF) 5.25 % पर बनी रही
- मार्जिनल स्टैंडिंग फ़ेसिलिटी (MSF) एवं बैंकरेट 5.75 % पर अपरिवर्तित
- क्रेडिट लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फ़ेसिलिटी (LAF) 5.25 % पर जारी
- CRR में कोई बदलाव नहीं (अक्टूबर में पहले ही कटौती की गई थी)
इन्फ्लेशन की भविष्यवाणी में गंभीर गिरावट आयी: FY26 के लिए CPI इन्फ्लेशन को 4.5 % से घटाकर 2.6 % कर दिया गया। इस सुधार का श्रेय खाद्य कीमतों में गिरावट, पर्याप्त भंडारण और अनुकूल मानसून को दिया गया। साथ ही, कोर इन्फ्लेशन स्थिर रहा, जिससे RBI ने ‘न्युट्रल’ नीति स्थिति बनाए रखी।
GDP की बात करें तो RBI ने FY26 के लिए आर्थिक वृद्धि का अनुमान 6.5 % से बढ़ाकर 6.8 % किया। Q1 FY26 में वास्तविक वृद्धि 7.8 % और Q2 के प्रोजेक्शन 7.0 % रहे।
विशेषज्ञों की राय
Crisil Limited के मुख्य अर्थशास्त्री Dharmakirti Joshi ने कहा, “इन्फ्लेशन की अपेक्षा कम रहने की वजह से रेपो रेट में कटौती हो सकती है, लेकिन हमें कोर इन्फ्लेशन और सोने की कीमतों को भी देखना होगा।”
ICRA की मुख्य अर्थशास्त्री Aditi Nayar ने इस नीति को “स्थिति को स्थिर रखने के लिए सही” कहा, क्योंकि GST सुधारों से कीमतों में दबाव कम हो रहा है, परंतु उपभोक्ता मांग में बढ़ोतरी की संभावना है।
Bank of Baroda के मुख्य अर्थशास्त्री Madan Sabnavis ने कहा, “मौजूदा सत्र में दर में कोई बदलाव संभव नहीं, क्योंकि बाजार की अपेक्षा अपेक्षित थी, परंतु लंबी अवधि के लिए सुधार जारी रहेंगे।”
आर्थिक प्रभाव और बाजार की प्रतिक्रिया
घर‑खरीददारों के लिए यह फैसला तुरंत राहत लेकर आया—EMI की संभावित बढ़ोतरी नहीं हुई, जिससे कई प्रथम गृह खरीदारों की साँसें अबल रही। शेयर बाजार ने RBI की स्थिरता को साकार माना, रिलायंस, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ (TCS) जैसे बड़े स्टॉक्स में हल्की‑हल्की उछाल देखी गई।
वित्तीय संस्थानों ने कहा कि स्थिर दर से बैंकों को परिपक्व लोन‑पोर्टफोलियो का पुनः‑संतुलन करने का समय मिला, जबकि प्रवासी दर्ज़ी (हाउसिंग) ऋण की मांग में हल्की‑हल्की गिरावट आने की संभावना है।
आगे का रास्ता और संभावित जोखिम
भविष्य में दो प्रमुख जोखिम मौजूद हैं:
- अमेरिकी सरकार द्वारा नई टैरिफ़‑नीति—राष्ट्रपति Donald Trump ने हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक सामान और फार्मा शिपमेंट पर अतिरिक्त शुल्क लागू किए हैं, जो निर्यातकों की लाभ मार्जिन को घटा सकता है।
- आगामी जलवायु‑संबंधित जोखिम—यदि मानसून कमजोर रहा तो खाद्य भंडार पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे inflation फिर से ऊपर उठ सकता है।
इन जोखिमों को देखते हुए RBI ने संकेत दिया कि वह ‘न्युट्रल’ नीति स्थिति को बनाए रखते हुए, डेटा‑ड्रिवेन दृष्टिकोण अपनाएगा। यदि इनपुट्स में बदलाव आता है, तो अगली बैठक (अक्टूबर‑नवम्बर) में दर में संशोधन की संभावना बनी रहेगी।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
रेपो रेट में स्थिरता का घर‑खरीददारों पर क्या असर होगा?
रेपो रेट 5.50 % पर समान रहने से बैंकों को उधार देने की लागत नहीं बढ़ी, इसलिए गृह ऋण पर मौजूदा EMI में कोई बदलाव नहीं आया। इससे पहली बार गृह खरीदने वाले या पुनर्वित्तीयकरण (refinance) की योजना बनाने वाले लोग अपना बजट स्थिर रख सकते हैं।
GST सुधारों ने इन्फ्लेशन को कैसे प्रभावित किया?
नवीन GST स्लैब पुनर्गठन से कई आवश्यक वस्तुओं पर कर भार कम हुआ, जिससे उपभोक्ता कीमतें घटीं। RBI ने इस कमी को इन्फ्लेशन में गिरावट का मुख्य कारण बताया, विशेषकर खाद्य एवं ऊर्जा वर्ग में।
अमेरिका के नए टैरिफ़ भारतीय निर्यात को कैसे प्रभावित करेंगे?
राष्ट्रपति Donald Trump द्वारा लगाए गए अतिरिक्त शुल्कों से इलेक्ट्रॉनिक और फार्मास्यूटिकल वस्तुओं की लागत बढ़ेगी। इससे भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धात्मकता घट सकती है और विदेशी मुद्रा प्रवाह पर दबाव बढ़ सकता है, जो अंततः डॉलर‑रुपिया दर को प्रभावित कर सकता है।
RBI की ‘न्युट्रल’ नीति स्थिति का अर्थ क्या है?
‘न्युट्रल’ का मतलब है कि RBI दोनों—वित्तीय स्थिरता और आर्थिक विकास—को संतुलित रख रहा है। इस स्थिति में ब्याज दरों में तेज़ बदलाव नहीं होते; बल्कि डेटा के आधार पर क्रमिक समायोजन पर ध्यान दिया जाता है।
अगली MPC बैठक कब होगी और क्या दर में बदलाव की उम्मीद है?
RBI ने अगली Monetary Policy Committee बैठक अक्टूबर‑नवम्बर में निर्धारित की है। यदि इन्फ्लेशन लक्ष्य से ऊपर जाता है या वैश्विक जोखिम बढ़ते हैं, तो दर में वृद्धि या कटौती दोनों की संभावना बनी रहती है। वर्तमान संकेतकों को देखते हुए, कई विशेषज्ञ हल्की‑हल्की कटौती की संभावना के पक्ष में हैं।
jyoti igobymyfirstname
अक्तू॰ 7, 2025 AT 03:51 पूर्वाह्नओह माय फर्स्ट टाईम रेपो ना बदलना, दिल दी धड़कन थम गयी!
ritesh kumar
अक्तू॰ 8, 2025 AT 02:04 पूर्वाह्नदेश की मौद्रिक साख को अब भी हमारी साख के साथ बंधना चाहिए, RBI का स्थिर निर्णय एक सशक्त इशारा है, यह एक सुदृढ़ नीति की पुष्टि है, लेकिन कुछ कह रहे हैं कि यह उचित नहीं हो सकता यदि वैश्विक दबाव बढ़े, हमें सतर्क रहना चाहिए, हमेशां अपने अंदरूनी विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए।
Raja Rajan
अक्तू॰ 9, 2025 AT 00:17 पूर्वाह्नविचार ये है कि मौद्रिक नीति को तटस्थ रखना बाज़ार को स्थिरता देगा। इस प्रकार का कदम नीतियों में भरोसा बनाता है। निवेशकों को नुक़सान नहीं होगा।
Atish Gupta
अक्तू॰ 9, 2025 AT 22:31 अपराह्नभाईयों और बहनों, मैं देखता हूँ कि इस स्थिरता से आर्थिक माहौल में कुछ राहत मिली है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सीजनल वॉटर इफेक्ट और एग्ज़पोर्ट की चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं, इसलिए सतर्क रहने की जरूरत है।
Aanchal Talwar
अक्तू॰ 10, 2025 AT 20:44 अपराह्नमैं सहमत हूँ कि रेपो रेट को स्थिर रखना लोगों के EMI पर बोझ नहीं बढ़ाएगा, और घर‑खरीदारों को थोडा सुकून मिलेगा, साथ ही यह छोटे व्यवसायों के लिए भी थोड़ा राहत देगा।
bhavna bhedi
अक्तू॰ 11, 2025 AT 10:37 पूर्वाह्नआपकी बात पर पूरी तरह से गौरव है, वास्तव में इस निर्णय से मध्यम वर्ग के खर्च में स्थिरता आएगी, और हमें भविष्य में संभावित बदलावों के लिए तैयार रहना चाहिए।
Apu Mistry
अक्तू॰ 12, 2025 AT 14:24 अपराह्नवित्तीय नीतियों का गहरा असर समाज की रीढ़ पर पड़ता है।
जब RBI ने रेपो को 5.5% पर स्थिर करने का कदम उठाया, तो यह एक दार्शनिक द्वंद्व जैसा प्रतीत हुआ।
एक ओर यह आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देता है, तो दूसरी ओर मुद्रास्फीति के दुष्परिणामों से बचाव की जरूरत होती है।
इन्फ्लेशन को कम करने की जड़ में खाद्य कीमतों की गिरावट और मानसून की अनुकूलता है, लेकिन यह स्थिरता केवल एक क्षणिक प्रभाव हो सकता है।
हमारी साकारात्मक आशा इस बात पर निर्भर करती है कि वैश्विक बाजार में टैरिफ़ की धारा कैसे बहती है।
अमेरिकी टैरिफ़ नीति, जिसे ट्रम्प ने लागू किया, हमारे निर्यात को भारी दबाव में डाल सकती है।
यदि विदेशी निवेश कम हो गया, तो रुपये‑डॉलर दर में अस्थिरता बढ़ेगी, और इसका असर हमारे रोजमर्रा की कीमतों पर पड़ेगा।
बैंकिंग क्षेत्र में स्थिर रेट का मतलब है कि लोन‑पोर्टफोलियो को पुनः संतुलित करने का अवसर मिला है।
परंतु यह भी सच है कि अत्यधिक लिक्विडिटी से बैंकों में जोखिम‑भरी आय उत्पन्न हो सकती है।
जब हम आर्थिक वृद्धि के 6.8% के अनुमान को देखते हैं, तो यह संकेत मिलता है कि उत्पादन में सुधार हुआ है।
फिर भी, यदि मानसून कमजोर हो जाता है, तो कृषि उत्पादन में गिरावट आएगी, और फिर से कीमतों में उछाल आएगा।
इस समुद्र में नौका चलाते समय, हमें हर छोटी लहर को पहचानना होगा, क्योंकि वह बड़ी बाढ़ का संकेत दे सकता है।
डेटा‑ड्रिवेन नीति का अर्थ है कि भविष्य की त्वरित बदलावों के लिए RBI सतर्क रहता है।
अंत में, मैं मानता हूँ कि यह स्थिरता केवल एक अस्थायी शरणस्थली है, और हमें दीर्घकालिक दृष्टिकोण से योजना बनानी चाहिए।
समय ही बताएगा कि यह नीति हमारे आर्थिक भविष्य को किस दिशा में ले जाएगी।
Ananth Mohan
अक्तू॰ 12, 2025 AT 22:44 अपराह्नआपके विस्तृत विश्लेषण में कई महत्त्वपूर्ण बिंदु उभरे हैं, विशेषकर टैरिफ़ प्रभाव और मानसून जोखिम पर आपका दृष्टिकोण स्पष्ट है। इस प्रकार की डेटा‑आधारित चर्चा नीति‑निर्धारकों के लिए उपयोगी होगी।
Abhishek Agrawal
अक्तू॰ 13, 2025 AT 20:57 अपराह्नसच में, रेपो रेट को स्थिर रखना, एक आदर्श कदम नहीं हो सकता, अगर हम दीर्घकालिक स्थिरता की बात करें, तो यह केवल अस्थायी राहत है, लेकिन क्या यह इतना सरल है, क्या हम सभी जोखिमों को अनदेखा कर रहे हैं?!
Rajnish Swaroop Azad
अक्तू॰ 14, 2025 AT 19:11 अपराह्नमुझे लगता है कि यह नीति एक बड़ी दांव की तरह है, बाजार को हिला देती है, लेकिन फिर भी यह एक रहस्य है कि अगली बैठक में क्या होगा
Zoya Malik
अक्तू॰ 15, 2025 AT 06:17 पूर्वाह्नआपके अंदाज़ में अतिशयोक्ति है, वास्तविक डेटा बताता है कि अभी भी कई अनिश्चितताएँ बनी हैं।
Neha Shetty
अक्तू॰ 16, 2025 AT 04:31 पूर्वाह्नबिल्कुल, RBI की यह चाल आम जनता को थोड़ा आराम देगी, खासकर उन लोगों को जो अब घर‑खरीद के लिए कर्ज ले रहे हैं। साथ ही, शेयर बाजार में भी हल्की‑हल्की उछाल देखी गई, जो निवेशकों को आशावादी बनाता है। उम्मीद है कि अगली नीति में भी इस तरह का संतुलन बना रहेगा।
uday goud
अक्तू॰ 17, 2025 AT 02:44 पूर्वाह्नजैसे एक कलाकार अपनी कैनवास पर रंग बिखेरता है, वैसे ही RBI ने मौद्रिक नीतियों के रंग चुनें, जो न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक रंग भी दर्शाते हैं; इसलिए यह स्थिरता सिर्फ आँकड़े नहीं, बल्कि लोगों के जीवन में नई संभावनाओं की छटा लाती है।
Harsh Kumar
अक्तू॰ 17, 2025 AT 11:04 पूर्वाह्नबहुत सुंदर कहा आपने 😊, ये नीति सच में लोगों की ज़िन्दगी में रंग भर रही है, उम्मीद है कि आगे भी ऐसे ही कदम आते रहें! 🚀
suchi gaur
अक्तू॰ 18, 2025 AT 09:17 पूर्वाह्न🤔 यह वित्तीय रणनीति उच्चतम वर्ग के विश्लेषकों के लिये ही समझ में आएगी; आम जनजीवन पर इसका प्रभाव बेमानी हो सकता है।
Rajan India
अक्तू॰ 19, 2025 AT 07:31 पूर्वाह्नदेखता हूँ सबके पास अलग‑अलग राय हैं, रेट बदलना या न बदलना, अंत में यह आर्थिक ताल में एक बीट है।
Parul Saxena
अक्तू॰ 20, 2025 AT 05:44 पूर्वाह्नमौद्रिक नीति का स्थिर रहना हमारे आर्थिक सरोपरि के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है।
पहले से ही RBI ने कई बार रेट घटाया, और अब यह निरंतरता दर्शाती है कि वे सावधानी बरत रहे हैं।
जब उपभोक्ता मूल्यों में स्थिरता आती है, तो घर‑खरीद के सपने फिर से साकार हो सकते हैं।
वहीं, यदि वैश्विक बाजार में अनिश्चितता बढ़ती है, तो यह स्थिरता कभी‑कभी एक सूक्ष्म जाल बन सकती है।
किसी भी स्थिति में, भारतीय बैंकिंग सिस्टम को लिक्विडिटी का प्रबंध करना ही पड़ेगा।
वित्तीय संस्थानों को अब अपने लोन‑पोर्टफोलियो को पुनः संतुलित करने का अवसर मिला है।
कम ब्याज दर का मतलब है कि छोटे व्यवसायों को ऋण की सुगमता मिल सकती है।
दूसरी ओर, यह जोखिम उठाने की प्रवृत्ति को भी बढ़ावा दे सकता है, जिससे बैंकों में असुरक्षा बढ़ सकती है।
इस संदर्भ में, सरकार को भी वित्तीय नियामक उपायों को सुदृढ़ करना चाहिए।
भविष्य में अगर मानसून कमजोर हुआ, तो कृषि क्षेत्र में दबाव बढ़ेगा और इससे मूलभूत वस्तुओं की कीमतें फिर से ऊपर जा सकती हैं।
इसलिए, नीति निर्माताओं को डेटा‑ड्रिवेन दृष्टिकोण बनाए रखना आवश्यक है।
अंत में, यह स्थिरता एक अस्थायी शीतकालिक विश्राम की तरह है, जो आगे के परिवर्तन के लिए मंच तैयार करती है।
Vishal Kumar Vaswani
अक्तू॰ 20, 2025 AT 16:51 अपराह्न😒 वास्तविकता में, इस स्थिरता के पीछे छुपी हुई शक्ति खेल हैं, विदेशी एजेंसियाँ और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय समूह इस नीति को अपने लाभ के लिये मोड़ रहे हैं।
Gurjeet Chhabra
अक्तू॰ 21, 2025 AT 15:04 अपराह्नक्या अगले महीने में कोई बदलाव की संभावना है, यह देखना रोचक रहेगा।