अमेरिकी फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) क्या है और क्यों मायने रखता है?

अमेरिकी फेडरल रिजर्व, जिसे आमतौर पर 'फेड' कहा जाता है, अमेरिका का केंद्रीय बैंक है। इसका काम महंगाई को नियंत्रित करना, बेरोज़गारी पर निगरानी रखना और बैंकिंग सिस्टम को स्थिर रखना है। फेड के कदम सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं रहते — दुनिया भर के बाज़ार, डॉलर की क़ीमत और भारत के निवेशक भी सीधे प्रभावित होते हैं।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के मुख्य उपकरण

फेड के पास कुछ सीधी चालें हैं जिनसे वह अर्थव्यवस्था पर असर डालता है। सबसे महत्वपूर्ण है फेडरल फंड्स रेट — बैंक आपस में जो शॉर्ट-टर्म उधार लेते हैं उसका ब्याज़। रेट बढ़ाओ तो क़र्ज़ महंगा होगा; घटाओ तो सस्ता।

दूसरे, ओपन मार्केट ऑपरेशन्स के ज़रिये फेड सरकारी बॉन्ड खरीदता या बेचता है, जिससे बाज़ार में नकदी की मात्रा बदलती है। तीसरा तरीका क्वांटिटेटिव ईज़िंग या टाइटनिंग है, जब वह बड़े पैमाने पर बॉन्ड खरीद या बेच कर लंबे समय के ब्याज़ पर असर डालता है।

फेड की बैठकें FOMC (Federal Open Market Committee) में होती हैं और ये महीने-तारीख पर दुनिया की निगाहें केंद्रित कर देती हैं। फैसले के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस और मिनट्स भी आते हैं, जिनसे नीति की दिशा साफ़ होती है।

भारत और आपके पैसे पर असर — सीधे और आसान

खुद से पूछते हैं — फेड का रेट बढ़ना भारतीय शेयर बाजार, बांड या रुपया कैसे प्रभावित करेगा? जब फेड रेट बढ़ता है तो अमेरिकी बॉन्ड ज्यादा आकर्षक दिखते हैं। विदेशी निवेशक डॉलर में निवेश लौटाते हैं, जिससे रुपये पर दबाव आता है और हमारी बांड यील्ड बढ़ सकती है। इससे इक्विटी मार्केट में बिकवाली भी हो सकती है।

आम तौर पर फेड की कड़ी नीति से कच्चे तेल और अन्य कमोडिटी की क़ीमतों पर भी असर पड़ता है, जो भारत के आयात का खर्च बढ़ा सकती है और महंगाई को बढ़ावा दे सकती है। दूसरी तरफ अगर फेड रेट नीचे आता है, तो रुपये को राहत मिल सकती है और इक्विटी में उछाल आ सकता है।

निवेशक के तौर पर क्या करें? सबसे पहले फेड की अगली FOMC तारीख और बयान देखें। CPI (महंगाई), नौकरी के आँकड़े और PCE जैसे आंकड़े फेड के फैसले को प्रभावित करते हैं। जोखिम कम करने के लिए डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो रखें — इक्विटी, बॉन्ड और थोड़ा अंतरराष्ट्रीय एक्सपोज़र। मुद्रा जोखिम से बचने के लिए हेजिंग विकल्प या डॉलर लॉन्ग-शॉर्ट रणनीति देख सकते हैं।

यदि आप शॉर्ट-टर्म ट्रेडर हैं तो फेड प्रेस कॉन्फ्रेंस के समय घबराकर बड़ी फैसले न लें; स्लिपेज और वॉलैटिलिटी ज़्यादा होती है। लॉन्ग-टर्म निवेशक के लिए फेड के चक्र एक मौका भी होते हैं — रिबैलेंसिंग कर के बेहतर एंट्री मिल सकती है।

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अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैठक आज: क्या पावेल सितंबर में दर कटौती की संभावना पर प्रकाश डालेंगे?

अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीति बैठक आज समाप्त हो रही है, और बाजार सहभागियों की नजरें उसके परिणाम पर टिकी हैं। सीएमई के फेडवॉच टूल के मुताबिक, फेड 25 आधार अंक की दर कटौती कर सकता है। जून में अमेरिकी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 0.1% की गिरावट और वार्षिक मुद्रास्फीति दर 3% होने से फेड के निर्णय पर प्रभाव पड़ सकता है। इसके साथ ही, एफओपी (नॉनफार्म पेरोल्स) में भी ऐतिहासिक वृध्दि देखी गई है।